मन मैला तन ऊजरा, बगुला कपटी अंग। ता सौ तो कौवा भला, तन मन एकहि अंग ।।
कबीर वाणी
कबीरदास जी कहते हैं कि हमें “में” को सुधारना चाहिए बगुले की तरह उज्जवल देखने और मन से मलिन होने के बजाय जैसे हैं वैसे ही दिखने चाहिए हमारे जिससे अंतर्मन का सुधार हो सके
मन मैला तन ऊजरा, बगुला कपटी अंग। ता सौ तो कौवा भला, तन मन एकहि अंग ।।
कबीर वाणी
कबीरदास जी कहते हैं कि हमें “में” को सुधारना चाहिए बगुले की तरह उज्जवल देखने और मन से मलिन होने के बजाय जैसे हैं वैसे ही दिखने चाहिए हमारे जिससे अंतर्मन का सुधार हो सके